जीतना और लौटा देना हमारी संस्कृति है, बाहुबली ने भरत का राज्य जीता और उन्हें लौटा दिया: क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर जी गुरुदेव
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जीतना और लौटा देना हमारी संस्कृति है, बाहुबली ने भरत का राज्य जीता और उन्हें लौटा दिया: क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर जी गुरुदेव

Siddhachakra Mahamandal Vidhan

Siddhachakra Mahamandal Vidhan

Siddhachakra Mahamandal Vidhan: परम पूज्य श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चयसागर जी गुरुदेव के शिष्य परम पूज्य जिनवाणी पुत्र क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर जी गुरुदेव ने चण्डीगढ़ सेक्टर 27B में चल रहे सिद्धचक्र महामण्डल विधान के आठवें दिन धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा — जीतना और लौटा देना हमारी संस्कृति है— बाहुबली ने भरत का राज्य जीता और उन्हें लौटा दिया। श्रीराम ने लंका का राज्य जीता और विभीषण को लौटा दिया। श्री कृष्ण ने मथुरा का राज्य जीता और उन्हें लौटा दिया। आधुनिक काल में लाल बहादुर शास्त्री ने पाकिस्तान से युद्ध जीता और जीती हुई जमीन उन्हें लौटा दी। ‘अर्जन के साथ विसर्जन जरूरी है और यही हमारी भारतीय संस्कृति भी है।’ और ऐसा ज्ञान हमें मात्र गुरुओं के माध्यम से मिलता है। गुरु ही हमें हमारे जीवन में सद राह दिखाते हैं, जीवन को जीवन्त बनाने की कला सिखाते हैं। जिसके ऊपर गुरु का हाथ होता है उसका जंगल में भी मंगल होता है। और जिसके जीवन में गुरु नहीं है उसके जीवन का प्रत्येक क्षण अमंगल है, उसका हर एक मंगल भी अमंगलमय ही है। जिस प्रकार मेले में बच्चा अपनी मां की उंगली पकड़ के सारे मेले को घूम लेता है और शाम को घर भी आ जाता है उसी प्रकार जिसने अपने जीवन में गुरु को स्थान दिया है वह संसार के सभी अभ्युदय को प्राप्त करके अन्त में अपने वास्तविक निवास स्थान अर्थात् मोक्ष/बैकुण्ठ को प्राप्त होता है। 

सिद्धचक्र महामण्डल विधान के आठवें दिन अंतिम दिन धर्म श्रेष्ठी श्रीमान धर्म बहादुर जैन सपरिवार  एवं जैन समाज के प्रबुद्ध वर्ग में नवरत्न जैन एवं संत कुमार जैन आदि सभी भक्तों ने मिलकर बड़े ही धूमधाम एवं मनोभावों के साथ भगवान की 1024 अर्घों के माध्यम से पूजन-अर्चन किया। और आज के ही दिन दिगम्बर जैन समाज के महान आचार्य वात्सल्य रत्नाकर श्री 108 विमलसागर जी महाराज का 70वां संयम दिवस मनाने का भी सभी भक्तों को सौभाग्य प्राप्त हुआ। और भक्तों ने गुरुदेव की जाप से सम्पूर्ण मन्दिर परिसर को गुंजायमान कर दिया।

कल सिद्धचक्र महामण्डल विधान का समापन दिवस है समापन दिवस के उपलक्ष्य में शान्ति विधान के बाद पूर्ण आहुतियों के साथ हवन होगा। हवन के पश्चात पालकी में श्री जी को विराजमान करके शोभायात्रा निकाली जाएगी।

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